नीतीश के गढ़ में चिराग की सभा, तेजस्वी की सीट पर नजर; क्या नया खेल रच रहे हैं चिराग पासवान?

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Bihar Election 2025: एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने एक बार फिर बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है. एनडीए के घटक दल होने के बावजूद वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गढ़ राजगीर में सभा कर राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन कर चुके हैं. वहीं तेजस्वी यादव की सीट राघोपुर को लेकर भी उन्होंने बयान देकर संकेत दे दिया है कि उनका मकसद केवल सहयोगी बनकर रहना नहीं, बल्कि अगुवाई करना है. सवाल उठता है कि चिराग की चुनावी रणनीति क्या सिर्फ सीटों का विस्तार है या मुख्यमंत्री पद की ओर कदम?

नीतीश के इलाके में सभा कर दिया संदेश

चिराग पासवान ने हाल ही में जिन इलाकों में सभाएं की हैं, उनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र राजगीर भी शामिल है. यह वही इलाका है, जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की एलजेपी के उम्मीदवारों ने जेडीयू को तगड़ा नुकसान पहुंचाया था. उस चुनावी चोट को नीतीश अब भी नहीं भूले हैं. चिराग की सभा और उसमें दिए गए बयानों से यह साफ है कि वे केवल गठबंधन का हिस्सा बनकर नहीं चल रहे, बल्कि अपने अस्तित्व को अलग पहचान देना चाहते हैं.

तेजस्वी की सीट पर भी दिखी दिलचस्पी

जब चिराग से पूछा गया कि क्या वे राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं, तो उनका जवाब था—”वह विधानसभा क्षेत्र मेरी ही लोकसभा सीट में आता है.” यानी राजनीतिक संकेतों की भाषा में कहें, तो चिराग ने इस सवाल को न तो सीधे नकारा और न ही स्वीकार किया. दूसरी ओर, उनके रिश्तेदार और सांसद अरुण भारती शाहाबाद इलाके का ज़िक्र कर रहे हैं, जो बताता है कि पार्टी के भीतर रणनीतिक मंथन ज़ोरों पर है.

चिराग के चुनाव लड़ने के पीछे असली मंशा?

यह सवाल अहम है कि चिराग को खुद चुनाव लड़ने की जरूरत क्यों पड़ रही है. क्या पार्टी विस्तार के लिए उनका खुद मैदान में उतरना ज़रूरी है? जानकारों का मानना है कि चिराग यह साबित करना चाहते हैं कि वे न केवल एलजेपी (रामविलास) के सर्वमान्य नेता हैं, बल्कि बिहार की राजनीति में एनडीए के भीतर भी उनका कद मजबूत हो. साथ ही वे अपने वोटरों को यह संदेश देना चाहते हैं कि एनडीए में वे महज ‘सहयोगी’ नहीं, बल्कि भविष्य के ‘लीडर’ हैं.

2020 की गलती दोहराना नहीं चाहते

2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की वजह से जेडीयू को काफी नुकसान हुआ था और नीतीश की सीटों की संख्या कम रह गई थी. इस बार अगर चिराग खुद मैदान में उतरते हैं, तो वे अपने वोटरों को एनडीए के पक्ष में एकजुट कर सकते हैं, जिससे सीटों का अंतर और मजबूत हो सके.

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‘सीएम इन वेटिंग’ की छवि बनाना चाहते हैं?

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि चिराग पासवान ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे के सहारे खुद को मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते हैं. भले ही अभी यह लक्ष्य दूर हो, लेकिन उम्मीद की राजनीति में चिराग अपनी मौजूदगी और नेतृत्व क्षमता का संकेत देने में जुटे हैं.

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