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भागलपुर | सबौर : आम खाने के बाद उसकी गुठली को लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, लेकिन अब यही गुठलियां खेती में क्रांति ला सकती हैं. बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर के वैज्ञानिकों ने आम की गुठलियों से बायोडिग्रेडेबल हाइड्रोजेल बनाने में सफलता पाई है. इस हाइड्रोजेल की खासियत है कि यह मिट्टी में पानी रोकने और जरूरत पड़ने पर पौधों को धीरे-धीरे उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है.

केंद्र से मिली मान्यता

बीएयू की इस अनूठी खोज को केंद्र सरकार से पेटेंट भी मिल चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक न सिर्फ टिकाऊ खेती को बढ़ावा देगी बल्कि किसानों की आय और जल संरक्षण के प्रयासों को भी मजबूती देगी.

खेतों में बनेगा ‘नमी बैंक’

जानकारी के अनुसार, आम की गुठली से तैयार हाइड्रोजेल अपने वजन से 400 से 500 गुना तक पानी सोख सकता है. खेत की मिट्टी में मिलाने पर यह नमी को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है और पौधों को धीरे-धीरे उपलब्ध कराता है. इससे सिंचाई पर होने वाला खर्च घटेगा और सूखा प्रभावित इलाकों में भी फसल को बचाना आसान हो जाएगा.

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गुठली से नई अर्थव्यवस्था की शुरुआत

भारत में हर साल लगभग 4 करोड़ टन आम पैदा होते हैं, जिनसे 40–50 लाख टन गुठलियां निकलती हैं. अब तक इन्हें व्यर्थ माना जाता था, लेकिन हाइड्रोजेल बनने से इसका मूल्य कई गुना बढ़ सकता है. एक टन गुठली से 100–120 किलो कर्नेल पाउडर निकलता है, जबकि हाइड्रोजेल में बदलने पर इसकी कीमत 5 से 7 गुना तक बढ़ सकती है.

किसानों की आय में होगा इजाफा

विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि बिहार और पूर्वी भारत की केवल 25 प्रतिशत गुठलियों का भी उपयोग किया जाए, तो हर साल 300 से 400 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को मिल सकती है. यह हाइड्रोजेल पूरी तरह पर्यावरण-अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल है, जिससे खेती को टिकाऊ बनाने में मदद मिलेगी.

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