MSP: भारत में हर साल सरकार किसानों की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP तय करती है, लेकिन बड़ी विडंबना यह है कि देश के अधिकांश किसान इसके बारे में अनजान हैं. जानकारी के अभाव में वे कृषि मंडियों में बिचौलियों, आढ़तियों और मुनाफाखोरों के हाथों लुट जाते हैं. जबकि अगर वे जान लें कि MSP क्या है, कैसे तय होती है और इसके पीछे क्या फॉर्मूला है, तो वे न सिर्फ बेहतर दाम पा सकते हैं, बल्कि लाखों रुपये की आमदनी भी सुनिश्चित कर सकते हैं.
MSP क्या है और क्यों जरूरी है?
MSP यानी Minimum Support Price वह न्यूनतम मूल्य है, जिस पर सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदने की गारंटी देती है. यह मूल्य हर साल खरीफ और रबी सीजन की प्रमुख फसलों के लिए तय किया जाता है. उद्देश्य होता है किसानों को बाजार की गिरती कीमतों से बचाना और उनके लिए न्यूनतम आय सुनिश्चित करना. यह व्यवस्था किसानों की आर्थिक सुरक्षा और देश की खाद्य सुरक्षा दोनों के लिए अहम है.
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MSP तय करने का फॉर्मूला क्या है?
MSP तय करने के लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों का पालन किया जाता है. इसमें मुख्यतः तीन तरह की लागत को देखा जाता है:
- A2 लागत: बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मजदूरी और सिंचाई जैसे सीधे खर्च.
- FL (Family Labour): परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए श्रम का अनुमानित मूल्य.
- C2 लागत: A2+FL के साथ-साथ स्वामित्व वाली भूमि का किराया और पूंजी पर ब्याज.
सरकार फिलहाल A2+FL+50% लाभ के आधार पर MSP तय करती है. लेकिन स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी कि MSP को C2+50% लाभ के आधार पर तय किया जाए, जिससे किसानों को उनकी असली लागत और उचित लाभ मिल सके.
MSP से किसानों को क्या मिल सकता है?
- बाजार मूल्य से सुरक्षा: अगर बाजार में दाम गिरते हैं, तो भी MSP किसानों की रक्षा करता है.
- न्यूनतम आय की गारंटी: इससे किसान योजनाबद्ध ढंग से खेती कर पाते हैं.
- उत्पादन को बढ़ावा: MSP मिलने से किसान दलहन, तिलहन और अन्य जरूरी फसलों की ओर भी रुख करते हैं.
- खाद्य सुरक्षा में मदद: पीडीएस के लिए अनाज की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होती है.
अगर MSP की सही जानकारी हो, तो क्या बदलेगा?
अगर किसानों को C2+50% फार्मूला के अनुसार MSP मिलना शुरू हो जाए और उन्हें इसकी पूरी जानकारी हो, तो वे बिचौलियों से मुक्त होकर मंडियों में अपने अनाज का सही दाम पा सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर C2 लागत 1200 रुपये है, तो MSP 1800 रुपये होनी चाहिए. लेकिन अगर किसानों को इसकी जानकारी ही न हो, तो वे इससे वंचित रह जाते हैं.
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