Bhagalpur Election 2025 : पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे ने शनिवार को नामांकन पत्र दाखिल नहीं किया. वे सीएमएस स्कूल से समर्थकों की भारी भीड़ के साथ ढोल-नगाड़ों के बीच नामांकन के लिए निकले थे. समर्थक “अर्जित चौबे जिंदाबाद” के नारे लगाते हुए एसडीओ कार्यालय की ओर बढ़ रहे थे. माहौल पूरी तरह उत्सव जैसा था. लेकिन कार्यालय के गेट पर पहुंचते ही परिदृश्य अचानक बदल गया.
अर्जित को पिता अश्विनी चौबे का फोन आया, जिसमें उन्हें नामांकन से मना कर दिया गया. कुछ क्षण की बातचीत के बाद अर्जित ने बिना नामांकन किए ही वापसी का फैसला ले लिया. समर्थक हैरान रह गए, लेकिन उन्होंने पिता के आदेश को सर्वोपरि बताते हुए चुप्पी साध ली.
नामांकन जुलूस में दिखा जोर, लेकिन अंत में लौटे खाली हाथ
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए भागलपुर से भाजपा के दावेदार पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की, लेकिन योजना अधूरी रह गई.#ArjitShashwat, #AshwiniChaubey, #BiharElection2025, #BJPBihar, #BhagalpurPolitics pic.twitter.com/ahaVkyuUzF
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शनिवार की दोपहर से ही अर्जित शाश्वत का जुलूस शहर की चर्चा बना हुआ था. समर्थक झंडा-बैनर लेकर सीएमएस स्कूल से एसडीओ कार्यालय तक मार्च कर रहे थे. भारी भीड़ में महिलाएं भी शामिल थीं. पूरा माहौल शक्ति प्रदर्शन जैसा लग रहा था. कयास लगाया जा रहा था कि अर्जित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरेंगे, जिससे भाजपा को नुकसान हो सकता है. लेकिन गेट पर पहुंचे ही पिता के आदेश ने सारी दिशा बदल दी. फोन कटते ही अर्जित ने समर्थकों से कहा कि अब वे नामांकन नहीं करेंगे.
‘संघ और भाजपा के सच्चे सिपाही हैं अर्जित’
नामांकन रद्द करने के बाद अर्जित शाश्वत चौबे ने मीडिया से कहा कि वे भाजपा और संघ के अनुशासित कार्यकर्ता हैं. उन्होंने कहा, “माता-पिता और पार्टी नेतृत्व के आदेश पर मैंने नामांकन नहीं कराया है. मेरा कर्तव्य है संगठन की मर्यादा का पालन करना. अब मैं भागलपुर में एनडीए प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने में जुट जाऊंगा.” अर्जित ने कहा कि उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि कमल खिलाना है. उन्होंने इसे परिवार और संगठन दोनों की भावनाओं का सम्मान बताया.
पिता अश्विनी चौबे ने दिया सख्त संदेश
सूत्रों के अनुसार, अर्जित जब नामांकन के लिए निकले थे, तभी दिल्ली और पटना में भाजपा नेतृत्व की नजर उन पर थी. अश्विनी चौबे से सीधे संपर्क किया गया और उन्होंने बेटे को सख्त निर्देश दिया कि वे पार्टी लाइन से बाहर जाकर कोई कदम न उठाएं. बताया जाता है कि यही वह फोन कॉल था जिसने पूरे घटनाक्रम को मोड़ दिया. भाजपा के अंदर इसे अनुशासन की जीत माना जा रहा है.
पहले से बने हुए थे संकेत, जब पांडेय को मिला टिकट
भागलपुर सीट से भाजपा ने रोहित पांडेय को टिकट दिया था. पांडेय टिकट लेने के बाद सबसे पहले अश्विनी चौबे से मिले और उनका आशीर्वाद लिया था. उसी समय चौबे ने भरोसा दिया था कि वे उनके प्रचार में शामिल होंगे. इसके बाद भाजपा ने उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में डाल दिया. राजनीतिक गलियारों में तभी यह अटकल तेज हो गई थी कि अर्जित को नामांकन से रोका जा सकता है. आखिरकार, शनिवार को वही हुआ — पिता और पार्टी दोनों के आदेश के आगे अर्जित झुक गए.
राजनीतिक संदेश: अनुशासन पर भाजपा की मोहर
अर्जित का यह कदम भाजपा के लिए राहत की खबर माना जा रहा है. निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उनके मैदान में उतरने से पार्टी को नुकसान की आशंका थी. लेकिन नामांकन से इनकार कर उन्होंने यह संदेश दिया कि संगठन उनके लिए सर्वोपरि है. स्थानीय स्तर पर उनके समर्थक भले निराश हैं, लेकिन भाजपा खेमे में इसे “बागी से वापसी” के रूप में देखा जा रहा है.
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