Vats Dwadashi 2025: भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष द्वादशी को वत्स द्वादशी या बछ बारस व्रत के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से गौ माता और उनके बछड़ों के सम्मान में रखा जाता है. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने की परंपरा रही है.
व्रत का इतिहास और महत्व
वत्स द्वादशी का पर्व धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है. इसे करने से घर में सुख-शांति, संपत्ति की वृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है. यह व्रत खासकर विवाहित महिलाओं के लिए लाभकारी माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन की गई पूजा और व्रत का फल जल्दी प्राप्त होता है.
शुभ मुहूर्त
द्वादशी तिथि 19 अगस्त, मंगलवार दोपहर 03:32 बजे से शुरू होकर 20 अगस्त, बुधवार दोपहर 01:58 बजे तक रहेगी. इस दिन सूर्योदय से व्रत आरंभ करना शुभ होता है.
व्रत की तैयारी
- प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लें.
- घर और पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें.
- गाय और उसके बछड़े के लिए स्वच्छ स्थान तैयार करें.
पूजा की विधि
- पूजा से पहले गाय का तिलक करें.
- तांबे के पात्र में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए उसे गाय के सामने अर्पित करें.
- उड़द, मूंग और मोठ से बने व्यंजन गाय को खिलाएं.
- दिनभर उपवास रखें और रात में व्रत का पारण करें.
- व्रत का सामाजिक और पारिवारिक महत्व
- यह व्रत परिवार में सौहार्द और आपसी प्रेम बढ़ाता है.
- गौ माता की सेवा से कृषि और पशुपालन में भी समृद्धि आती है.
- इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन या दान देने का भी विशेष महत्व है.
विशेष सुझाव
- व्रत करते समय सकारात्मक विचार और भक्ति भाव बनाए रखें.
- पूजा करते समय गाय और उसके बछड़े का सम्मान करना अत्यंत शुभ माना जाता है.
- व्रत के दौरान शुद्ध आहार और संयम का पालन करना चाहिए.
वत्स द्वादशी का यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी इसे विशेष माना जाता है. श्रद्धा और भक्ति से किए गए व्रत और पूजा से घर में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मानसिक शांति आती है.
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