Smart City: स्मार्ट सिटी के रूप में घोषित होने के बावजूद भागलपुर की दयनीय स्थिति पर गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, भागलपुर ने गहरी चिंता व्यक्त की है. हाल ही में आयोजित एक बैठक में शहर की समस्याओं और उनके समाधान पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रकाश चंद्र गुप्ता ने की और संचालन अंतर्राष्ट्रीय गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. मनोज कुमार ने किया.
समस्याओं का अंबार, ‘स्मार्ट सिटी’ हास्यास्पद
बैठक में उपस्थित सदस्यों ने इस बात पर चिंता जताई कि भागलपुर समस्याओं के अंबार पर बैठा है और अब “स्मार्ट सिटी” शब्द भी हास्यास्पद लगने लगा है. सदस्यों के अनुसार, शहर की मूलभूत समस्याएं जैसे सफाई, पानी और सड़कें बद से बदतर स्थिति में हैं. नगर निगम और स्मार्ट सिटी प्लानिंग ऑफिसर के पास विकास की कोई स्पष्ट योजना नहीं दिखती. सड़कों का बनना-टूटना जारी है, और अब तो टूटी हुई सड़कें बन भी नहीं पा रही हैं. स्मार्ट सिटी घोषित हुए 10 साल बीत जाने के बावजूद इसका स्वरूप कहीं नजर नहीं आता.
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ऐतिहासिक लापरवाही और फंड का दुरुपयोग?
डॉ. फारूक अली ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 1864 में बिहार का पहला नगर पालिका बनने और 28 मई 2026 को स्मार्ट सिटी घोषित होने के बावजूद, एक भी सड़क पूरी नहीं हुई है और न ही उचित जल निकासी या सफाई व जल आपूर्ति की व्यवस्था सुधर पाई है. उन्होंने विकास के नाम पर आवंटित मोटी रकम के दुरुपयोग का आरोप लगाया.
समाधान की ओर बढ़ते कदम
मनोज मिता ने गांधीवादी विचारों के माध्यम से समाधान की बात कही. डॉ. मनोज कुमार ने सुझाव दिया कि पूरे नगर को चार जोन में बांटकर समस्याओं का संकलन किया जाए और एक समेकित मांग पत्र प्रशासन को सौंपा जाए. कमल जायसवाल ने दो दशक से सफाई कर्मियों की बहाली न होने को नगर प्रशासन के लिए ‘तौहीन’ बताया. वार्ड पार्षद नेजाहत अंसारी ने निगम बैठकों में जनता के हितों की अनदेखी और आय बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही.
भविष्य के कार्यक्रमों और समस्याओं के संकलन के लिए डॉ. मनोज कुमार की अध्यक्षता में एक उपसमिति का भी गठन किया गया. इस बैठक में केंद्र के सह सचिव संजय कुमार, ऐनुल होदा, वीणा सिन्हा, गौरव जैन सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे.