Sama Chakeva 2025: सामा-चकेवा केवल पूजा का अवसर नहीं, बल्कि मिथिला की परंपरा, कला और लोकजीवन की आत्मा है. इस पर्व में महिलाएं मिलकर गीत गाती हैं, लोकधुनों पर थिरकती हैं और घर के आंगन में रंग-बिरंगे पक्षियों की मिट्टी की मूर्तियां सजाती हैं. दीपों की रोशनी, उल्लास और पारिवारिक मेल-मिलाप इस पर्व को एक भावनात्मक उत्सव बना देता है.
श्रीकृष्ण की पुत्री सामा से जुड़ी कथा
सामा-चकेवा का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा का विवाह चक्रवाक (चकेबा) नामक पुण्यशील पुरुष से हुआ था. द्वारका में चूड़क नाम के दुष्ट व्यक्ति ने सामा पर झूठा आरोप लगाया, जिससे नाराज़ होकर श्रीकृष्ण ने उसे पक्षी बनने का श्राप दे दिया. पत्नी के साथ रहने के लिए चक्रवाक ने भी पक्षी का रूप धारण कर लिया. श्राप के कारण कई ऋषि-मुनि भी पक्षी बन गए.
भाई सांबा की तपस्या से हुआ उद्धार
जब श्रीकृष्ण के पुत्र सांबा को अपनी बहन की विपत्ति का पता चला तो उन्होंने गहन तपस्या की. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने श्राप को समाप्त कर दिया और सामा-चकेबा सहित सभी को मानव रूप में लौटा दिया. इसी घटना से सामा-चकेवा पर्व की शुरुआत हुई, जो आज भी मिथिला में बहन-भाई के प्रेम और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है.
सुख-समृद्धि का संदेश देने वाला पर्व
कहा जाता है कि जो महिलाएं श्रद्धा से सामा-चकेवा की पूजा करती हैं, उनके पति और भाइयों की आयु लंबी होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. यही कारण है कि मिथिला क्षेत्र की महिलाएं इस पर्व को पूरे उत्साह और भावनात्मक जुड़ाव के साथ मनाती हैं.
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पूजा की प्रमुख सामग्री
इस पर्व में मिट्टी की सुंदर पक्षी मूर्तियां — सामा और चकेबा, सात ऋषियों के प्रतीक सप्तभैया, और छह आकृतियां (शीरी सामा) शामिल होती हैं. महिलाएं इन मूर्तियों को सजा कर गीत-नृत्य के साथ पूजा करती हैं.
पर्व मनाने के प्रमुख उद्देश्य
- भाई की लंबी उम्र और कुशलता की कामना के लिए.
- पति के स्वास्थ्य और सुख के लिए.
- परिवार में प्रेम और सौहार्द बनाए रखने के लिए.
- लोक संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों को सहेजने के लिए.
सात दिनों तक चलता है पर्व
सामा-चकेवा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णिमा तक यानी सात दिनों तक मनाया जाता है. इस दौरान महिलाएं प्रतिदिन शाम को आंगन में सामा-चकेवा की पूजा करती हैं. सातवें दिन “विदाई” की रस्म निभाई जाती है, जिसमें मिट्टी की मूर्तियों का नदी या तालाब में विसर्जन किया जाता है.
भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक
यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देता है — भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता, पति-पत्नी के साथ का आदर और परिवार के प्रति समर्पण. यही है सामा-चकेवा का असली सार.
2025 में पर्व की तिथि
सामा-चकेवा पर्व की शुरुआत 29 अक्टूबर 2025 से होगी और इसका समापन 5 नवंबर 2025 को “विदाई” के साथ किया जाएगा.
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