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लश्कर का ‘नया चेहरा’ द रेजिस्टेंस फ्रंट, जानें कब बना और वजूद में आया ‘नया’ खतरा

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Pahalgam Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए कायराना आतंकी हमले की जिम्मेदारी एक नए संगठन ने ली है – द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF). इस संगठन का नाम भले ही नया हो, लेकिन इसकी जड़ें गहरे और खतरनाक हैं. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, TRF असल में प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का ही एक मुखौटा संगठन है.

2019 में वजूद में आया ‘नया’ खतरा

आर्टिकल 370 के हटने के बाद कश्मीर में अपनी पैठ बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए लश्कर-ए-तैयबा ने 2019 में इस संगठन का गठन किया. TRF का मकसद घाटी में टारगेट किलिंग को अंजाम देना रहा है. इसने आम नागरिकों से लेकर सुरक्षा बलों के जवानों तक को अपना निशाना बनाया है. भारत सरकार ने 2023 में इस संगठन को आधिकारिक तौर पर आतंकी संगठन घोषित कर दिया था.

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स्लीपर सेल से टारगेट किलिंग तक

शुरुआत में TRF ने घाटी में स्लीपर सेल के तौर पर अपनी गतिविधियां शुरू की थीं लेकिन, जल्द ही इसने खुलकर टारगेट किलिंग को अपना मुख्य हथियार बना लिया. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि TRF को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का सपोर्ट भी है. इस संगठन के प्रमुख संस्थापकों में से एक शेख सज्जाद गुल है, जिस पर पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या का आरोप है और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने उस पर इनाम भी घोषित कर रखा है. इसके अलावा साजिद बट्ट और सलीम रहमानी जैसे खूंखार आतंकी भी इस संगठन के सक्रिय सदस्य हैं. महज छह साल के अंदर इस संगठन ने कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया है.

TRF का गठन क्यों हुआ?

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पुराने संगठनों से खुद को अलग और ‘स्थानीय’ दिखाने के लिए TRF का गठन किया गया. इसके पीछे मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी संगठनों की नजरों से बचना था, खासकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसी एजेंसियों से. FATF मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ काम करने वाली एक वैश्विक संस्था है. TRF घुसपैठियों को घाटी में समर्थन देने, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में भी सक्रिय रूप से शामिल है.

युवाओं को जोड़ने का खतरनाक प्लान

TRF का एक बड़ा लक्ष्य घाटी के युवाओं को अपने संगठन से जोड़ना है. इसके जरिए वह एक नया कैडर तैयार करना चाहता है, जो सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के रडार पर आसानी से न आए. इससे इस संगठन को अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने में मदद मिलती है. हालांकि, अभी तक किसी फिदायीन हमले में TRF का नाम सामने नहीं आया है. उनका मुख्य फोकस आसान निशाना ढूंढकर टारगेट किलिंग को अंजाम देना और फिर गायब हो जाना है. घाटी में काम करने वाले प्रवासी मजदूर, कश्मीरी पंडित और सुरक्षा बलों के कैंप अक्सर इनके निशाने पर रहते हैं. अपने हमलों को रिकॉर्ड करने और उसे प्रचारित करने के लिए ये आतंकी एडवांस बॉडीकैम का भी इस्तेमाल करते हैं.

इन बड़े हमलों में आया TRF का नाम

  • 1 अप्रैल 2020: केरन सेक्टर में पांच भारतीय सैनिकों पर हमला, सभी शहीद.
  • 30 अक्टूबर 2020: कुलगाम में तीन बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या.
  • 26 नवंबर 2020: श्रीनगर में सेना की टुकड़ी पर हमला.
  • 26 फरवरी 2023: पुलवामा में कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की हत्या.
  • 20 अक्टूबर 2024: गांदेरबल में एक डॉक्टर और छह प्रवासी मजदूरों की हत्या.

पहलगाम में पर्यटकों पर हुए इस ताजा हमले की जिम्मेदारी लेकर TRF ने एक बार फिर अपनी नापाक मौजूदगी दर्ज कराई है, जो कश्मीर में शांति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है. सुरक्षा एजेंसियां इस संगठन के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं.

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