Bhagalpur News: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) की सांस्कृतिक परिषद पिछले चार वर्षों से पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी है. न कोई सांस्कृतिक कैलेंडर जारी हुआ है, न ही किसी कॉलेज या पीजी विभाग में कार्यक्रम आयोजित हुआ है. इसका असर यह है कि छात्र-छात्राएं सांस्कृतिक गतिविधियों से पूरी तरह कट चुके हैं. न प्रतिभाओं को मंच मिल रहा है, न ही विश्वविद्यालय का नाम प्रतियोगिताओं में चमक रहा है. वर्ष 2019 के बाद से अब तक कोई इंटर कॉलेज सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हुआ है. परिषद के सदस्य भी निष्क्रिय हैं और छात्र उम्मीद छोड़ चुके हैं.
चार वर्षों से न कार्यक्रम, न परिषद की बैठक
टीएमबीयू की सांस्कृतिक परिषद की आखिरी सक्रियता वर्ष 2019 में देखी गई थी, जब विश्वविद्यालय की टीम ने इंटर यूनिवर्सिटी तरंग प्रतियोगिता में भाग लिया था. इसके बाद से न परिषद की बैठक हुई, न ही सालाना कैलेंडर जारी किया गया. परिषद के अधिकारी और सदस्य भी सांस्कृतिक आयोजनों की जिम्मेदारी निभाने से पूरी तरह पीछे हट चुके हैं.
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छात्रों में निराशा, प्रतिभा निखरने को नहीं मिल रहा मंच
कॉलेजों और पीजी विभागों के छात्र-छात्राओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इंटर कॉलेज प्रतियोगिता में भाग लेने की उन्हें प्रतीक्षा है. कई विद्यार्थियों का कहना है कि प्रतिभा होते हुए भी मंच के अभाव में वे पीछे रह जा रहे हैं. शास्त्रीय संगीत, वाद-विवाद, चित्रकला और निबंध जैसी विधाओं में भाग लेने वाले छात्र अब इनसे दूर हो रहे हैं.
पहले जीतते थे ट्रॉफी और मेडल
टीएमबीयू की सांस्कृतिक टीम 2018 में दरभंगा और 2019 में पाटलिपुत्रा विवि में आयोजित तरंग प्रतियोगिता में भाग लेकर कई पदक और ट्रॉफी जीत चुकी है. लेकिन अब विश्वविद्यालय का नाम किसी प्रतियोगिता में नहीं दिखता.
परिषद बनी लेकिन निष्क्रिय, राशि भी गई हवा
पूर्व कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता ने सांस्कृतिक परिषद का पुनर्गठन किया था और नौ सदस्यीय टीम बनाई गई थी. लेकिन उनके जाने के बाद परिषद एक बार भी नहीं बैठी. वहीं स्नातक और पीजी नामांकन में छात्रों से ‘कल्चर फंड’ के नाम पर राशि ली जाती है, मगर कार्यक्रम के लिए विश्वविद्यालय के पास न तो बजट है और न कॉलेजों से इस फंड का हिसाब.
जिम्मेदारी के बोझ में दब गई रचनात्मकता: सचिव का बयान
सांस्कृतिक परिषद की सचिव प्रो निशा झा ने कहा कि पीजी की लगातार परीक्षाओं के कारण समय नहीं मिल पा रहा. अकेली शिक्षक होने के कारण परीक्षा, प्रश्नपत्र निर्माण समेत अन्य जिम्मेदारियों में व्यस्तता रहती है. इस कारण सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर पूरा फोकस नहीं हो पा रहा है.
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