Bollywood vs South Industry
Bollywood vs South Industry: सालों तक बॉलीवुड भारतीय सिनेमा का बेताज बादशाह रहा. हिंदी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर राज किया. एक के बाद एक ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं, जिसे दर्शक भी बड़े ही चाव के साथ देखते थे, क्योंकि स्टोरी लाइन में एक्शन, इमोशन, ड्रामा, सॉन्ग और जबरदस्त कहानी का मिश्रण होता था.
Bollywood vs South Industry: साउथ इंडस्ट्री की एक बात तो स्पष्ट है कि यह दिनों दिन आगे बढ़ती ही जा रही है. अगर हिंदी सिनेमा अपना ताज दोबारा हासिल करना चाहता है, तो उसे अपनी जड़ों को अपनाने, अपनी कहानी कहने की कला को मसालेदार बनाना होगा. सीधे शब्दों में कहें तो मल्टी जॉनर फिल्म मेकिंग ही भारतीय सिनेमा है. इसमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ है और यह हर वर्गों को खूब एंटरटेन करता है. हालांकि बीते कई वर्षों से ऐसा लग रहा है कि बॉलीवुड अपना चार्म खोता जा रहा है. जवान, पठान, गदर 2 और स्त्री 2 को छोड़ दें, तो कई फिल्में बैक टू बैक फ्लॉप हुई है.
दक्षिण भारतीय सिनेमा की बात करें, तो अपने शक्तिशाली मनोरंजन से हिंदी क्षेत्र में तूफान ला दिया है. बाहुबली, केजीएफ, पुष्पा और आरआरआर जैसी फिल्मों ने न केवल दर्शक बटोरे बल्कि पूरी दुनिया में जबरदस्त कमाई के साथ कई अवॉर्ड भी अपने पाले में कर लिया है. .
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बॉलीवुड ने जैसे ही जश्न मनाना शुरू किया, तो उनकी कई फिल्में बैक टू बैक फ्लॉप हो गयी. इसमें ‘सेल्फी’, ‘भीड़’, ‘कुत्ते’, ‘कस्टडी’, ‘गुमराह’, ‘घूमर’, ‘चंदू चैंपियन’, ‘मैदान’, ‘जिगरा’, ‘तेजस’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ शामिल है. इधर ‘केजीएफ: चैप्टर 2’, ‘विक्रम’, ‘पोन्नियिन सेलवन I’ और ‘कंतारा’ ने बाजी मार ली. जैसे कई नाम शामिल हैं. वहीं, सिनेमाघरों में पुष्पा का राज शुरू हुआ, जो आज तक जारी है. .
साउथ मूवीज उन्हें रियल क्यों लग रही है. इसका जवाब देते हुए फिल्म क्रिटिक्स का मानना है कि दक्षिण भारतीय सिनेमा, चाहे वह तेलुगु, तमिल या कन्नड़ हो, ने देसी संस्कृति को अपनाया है और कला में महारत हासिल कर ली है.
अजीबो गरीब कहानी ने बड़े पैमाने पर बॉलीवुड के दर्शकों को अलग कर दिया है. छोटे शहर के लोग अश्लीलता और मॉर्डन सोच को हजम नहीं कर पा रहे हैं और वह अपनी फैमिली के साथ भी सिनेमाघरों का रूख नहीं कर रहे हैं, इसलिए मूवीज फ्लॉप हो रही है और इसे ओटीटी या फिर पायरेटेड साइट्स पर देखा जा रहा है.