Bihar News:बिहार के भागलपुर में नीरा प्रोजेक्ट के लिए बनी 2.05 करोड़ की बिल्डिंग खंडहर में तब्दील हो गयी है. इसमें न तो नीरा और न ही गुड़ बनाने का काम शुरू हो सका. इससे रोजगार भी किसी को नहीं मिल सका.
Bihar News:बिहार के भागलपुर में नीरा प्रोजेक्ट के लिए बनी 2.05 करोड़ की बिल्डिंग खंडहर में तब्दील हो गयी है. इसमें न तो नीरा और न ही गुड़ बनाने का काम शुरू हो सका. इससे रोजगार भी सृजित नहीं हो पाया. छह हॉल और चार से पांच कमरे वाला 40 डिसमिल से अधिक भूमि पर गोदाम जितना बड़ा प्लांट बना है. यह बरारी के बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (बियाडा) में उद्योग विभाग के नीरा प्रोजेक्ट के लिए बना था, जिसकी शुरुआत सात वर्ष बाद भी नहीं हो सकी है. यानी, शराबबंदी के बाद जीविका दीदी को स्वरोजगार उपलब्ध कराने की यह योजना ढस हो गयी. यह प्लांट अगर चालू होता, तो इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता. साथ ही ताड़ के पेड़ लगाने वालों को फायदा होता. लेकिन, इस योजना के धरातल पर नहीं उतरने से रोजगार की संभावना पर ग्रहण लग गया है.
भवन निर्माण विभाग और उद्योग विभाग के समन्वय के अभाव में यह धरातल पर नहीं उतर पाया. वर्ष 2018 में 2.05 करोड़ की लागत से प्लांट स्थापित करने के लिए भवन बना है और इसके खंडहर होने से सरकार की राशि बर्बाद हो गयी है. तकरीबन 9.5 करोड़ रुपये की लागत से नीरा व गुड़ तैयार करने के लिए प्लांट स्थापित किया जाना था.
प्लांट का निर्माण अधूरा छोड़ ठेकेदार भाग गए थे. प्लांट के लिए बन रहे शौचालय तक अर्धनिर्मित है. यह पूरी तरह से नहीं बन सका और न ही दोनों विभाग के बीच के समन्वय से योजना की प्रक्रिया पूरी हो सकी.
तत्कालीन डीएम प्रणव कुमार की अध्यक्षता में मॉनीटरिंग कमेटी का गठित हुई थी. कमेटी से लेकर भवन निर्माण विभाग और उद्योग विभाग ने कभी खोज-खबर तक नहीं ली. नतीजतन, यहां लगे खिड़की, दरवाजे, पंखे व बिजली वायरिंग की चोरी तक हो गयी है.
प्लांट में कम्फ्रेड प्रोसेसिंग यूनिट लगना था. इस पर तकरीबन 7.20 करोड़ इसकी लागत आती. भवन अधूरा रहने और इसकी की वजह से यह भी कार्य नहीं हो सका. कुल मिला कर.रोजगार की संभावना पर ग्रहण लग गया.
स्वादिष्ट नीरा को शहर के रेस्टोरेंट से लेकर लोकल बाजारों में बिक्री की योजना फेल हो गयी है. मद्य निषेद्य उत्पाद एवं निबंधन विभाग द्वारा बिहार नीरा नियमावली 2017 के तहत 67916 नीरा टैपर्स को लाइसेंस निर्गत करने के लिए चयन किया गया था. जीविका समूह से जुड़े लोगों को प्रशिक्षण के उपरांत लाइसेंस उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई थी. लेकिन, जीविका समूह को वेंडिंग पहचान पत्र के साथ वाहन क्रय करने के लिए राशि उपलब्ध कराने की योजना धरातल पर उतरने से पहले दम तोड़ गयी.