Bhagalpur News: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) में कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों के साथ एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) जरूर हुए, लेकिन अब तक इसका जमीनी लाभ छात्रों और शिक्षकों तक नहीं पहुंच पाया है. प्रशासन ने लगभग आधा दर्जन संस्थानों के साथ समझौते किए, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो सका.
पूर्व कुलपति ने किए थे एमओयू
टीएमबीयू के प्रो जवाहर लाल के कार्यकाल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेघालय, ग्लोबल लीडर फाउंडेशन (नई दिल्ली) और वीरेंद्र विश्वविद्यालय, राजशाही (बांग्लादेश) के साथ एमओयू साइन हुए. हालांकि, एक साल से अधिक समय बीतने के बाद भी इन समझौतों के तहत कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. इसके चलते टीएमबीयू के शिक्षक और छात्र इन एमओयू का लाभ नहीं उठा पाए और बाहर के संस्थानों के शिक्षक और छात्र भी विश्वविद्यालय नहीं आए.
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पहले हुए समझौते भी ठंडे पड़े
पूर्व में टीएमबीयू ने बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, श्री गौशाला समिति और बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के साथ भी एमओयू किए थे. इनमें छात्रों और शिक्षकों को रिसर्च और लैब सुविधाओं का लाभ मिलने का अवसर था, लेकिन इसकी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई.
वर्मी कंपोस्ट प्रोजेक्ट भी अधूरा
टीएमबीयू का बीएयू सबौर और श्री गौशाला समिति के साथ एमओयू में, छात्रों और किसानों तक सस्ता जैविक खाद (वर्मी कंपोस्ट) पहुंचाने का प्रोजेक्ट भी शामिल था. पहले यूनिट में सह किट तैयार की गई और पीजी जूलॉजी विभाग में दूसरा यूनिट बनाया गया. उद्देश्य था कि किसानों को लंबे समय तक मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने वाला वर्मी कंपोस्ट उपलब्ध कराया जाए. लेकिन जमीन पर इसका कोई ठोस परिणाम नहीं दिखा, और किसानों को तकनीकी सहयोग नहीं मिल पाया.
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सवाल अब उठने लगे हैं
इन परिस्थितियों ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या टीएमबीयू केवल एमओयू के नाम पर दिखावा कर रहा है या वास्तव में छात्रों और शिक्षकों के हित में कदम उठा रहा है. विशेषज्ञों और शिक्षकों का कहना है कि एमओयू का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब इसके कार्यान्वयन पर ध्यान दिया जाएगा.
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