HC24 News : बदलते समय के साथ, बिहार सरकार लगातार शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रयास कर रही है. हाल ही में डॉ. एस. सिद्धार्थ को शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव नियुक्त किया गया है. वह अपने अंदाज में स्कूलों के लिए नयी व्यवस्था को लेकर आदेश जारी करना शुरू कर दिया है.
Dr. Sidharth ने अपनी नियुक्ति के बाद स्कूलों की निगरानी व्यवस्था में बदलाव किया है. इस बदलाव से पूर्व में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) के हाथों में निहित स्कूलों की जांच और निगरानी की जिम्मेदारी अब डीएम और उनके द्वारा नामित अधिकारियों को सौंपी गई है. मिली जानकारी अनुसार इस संबंध में पत्र जारी किया गया है.
निष्पक्ष और प्रभावी जांच की पहल
इस बदलाव के पीछे विभागीय कमांड एंड कंट्रोल सेंटर में लगातार स्कूलों की व्यवस्था से संबंधित शिकायतें प्राप्त होना है. डॉ. सिद्धार्थ का मानना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी स्कूलों की जांच ठीक से नहीं कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिकायतें आ रही हैं. इसलिए, उन्होंने निगरानी की जिम्मेदारी डीएम और उनके नामित अधिकारियों को दी है ताकि निष्पक्ष और प्रभावी जांच सुनिश्चित की जा सके.
इस व्यवस्था में डीएम को अपने जिले के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी जो शिक्षा संबंधी शिकायतों को देखेगा. यह अधिकारी शिकायतों की जांच करेगा और अपनी रिपोर्ट सीधे डॉ. सिद्धार्थ को भेजेगा. डीएम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि हेल्पलाइन नंबर पर आने वाली सभी शिकायतें नियुक्त अधिकारी तक पहुंचें.
डीईओ की भूमिका अब सीमित कर दी गई है और वे स्कूलों की जांच और निगरानी में शामिल नहीं होंगे. यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर स्कूलों की जांच में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया है. डॉ. सिद्धार्थ इस बदलाव के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना चाहते हैं.
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शिक्षाविदों के तर्क को भी जानें
हालांकि, इस बदलाव की कुछ आलोचना भी हो रही है. कुछ शिक्षाविदों का तर्क है कि डीईओ के बिना स्कूलों की निगरानी प्रभावी नहीं हो पाएगी क्योंकि वे स्कूल प्रणाली की बारीकियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उनका मानना है कि डीईओ को निगरानी प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए ताकि उनकी विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सके.
इसके बावजूद, डॉ. सिद्धार्थ का दृढ़ विश्वास है कि यह बदलाव शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाएगा. उनका लक्ष्य शिकायतों की संख्या को कम करना और स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाना है. यह देखना अभी बाकी है कि यह नई व्यवस्था कितनी प्रभावी होती है और क्या यह बिहार में शिक्षा प्रणाली में अपेक्षित सुधार ला पाती है.