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Tuesday, October 14, 2025
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AI बना रहा दिमाग को सुस्त, MIT की रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा

ChatGPT Effect: AI टूल्स जैसे ChatGPT का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल अब इंसानी सोच को कमजोर कर रहा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह आदत दिमाग की सक्रियता को धीमा बना रही है.

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ChatGPT Effect: MIT के वैज्ञानिकों की एक नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि AI चैटबॉट्स पर ज्यादा निर्भरता इंसानी दिमाग की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है. रिसर्च में पाया गया कि जो लोग ChatGPT जैसे टूल्स का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, उनके दिमाग में सोचने की भागीदारी यानी “कॉग्निटिव इन्वॉल्वमेंट” कम हो जाती है. इससे न सिर्फ रचनात्मकता पर असर पड़ता है, बल्कि लंबे समय तक याददाश्त और आत्म-जुड़ाव भी कमजोर होता है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि यह आदत छात्रों और प्रोफेशनल्स दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकती है. उन्होंने चेताया कि टेक्नोलॉजी का उपयोग जरूरी है, लेकिन उस पर पूरी तरह निर्भर होना मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है.

MIT की रिसर्च में क्या निकला

MIT के वैज्ञानिकों ने एक दिलचस्प रिसर्च किया जिसमें 54 वयस्कों को तीन अलग-अलग तरीकों से निबंध लिखने के लिए कहा गया. पहली बार उन्होंने ChatGPT की मदद से लेख लिखा, दूसरी बार सर्च इंजन (जैसे Google) से और तीसरी बार सिर्फ अपनी सोच का उपयोग किया. इन सभी के दौरान प्रतिभागियों के दिमाग की इलेक्ट्रिकल गतिविधियों और उनके निबंधों की गुणवत्ता को ट्रैक किया गया.

चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि ChatGPT से लिखने वालों का दिमाग सबसे कम सक्रिय था. इतना ही नहीं, उन्हें अपने ही लिखे हुए निबंध को बाद में ठीक से याद करने में भी परेशानी हुई और भावनात्मक जुड़ाव की कमी देखी गई.

शिक्षा और सोचने की क्षमता पर असर

शोधकर्ताओं ने चेताया कि अगर लंबे समय तक लोग AI टूल्स पर निर्भर रहते हैं, तो उनकी सोचने और विश्लेषण करने की क्षमता धीमी हो सकती है. इसे विशेषज्ञों ने “मेटाकॉग्निटिव लेजीनेस” (Metacognitive Laziness) कहा है — यानी इंसान अब खुद दिमाग चलाने के बजाय टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो जाता है. MIT के एक्सपर्ट्स ने उदाहरण दिया कि 1970 के दशक में जब कैलकुलेटर स्कूलों में आया था, तो परीक्षाओं का स्तर बदला गया था ताकि छात्रों की गणनात्मक सोच बनी रहे.

लेकिन आज AI के साथ वैसा नहीं हो रहा. यही वजह है कि छात्र और युवा वर्ग AI के भरोसे इतना जीने लगे हैं कि उन्हें खुद से सोचने का अभ्यास ही नहीं हो रहा है.

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